मंगलवार 11 फ़रवरी 2025 - 11:31
क़ुरआन के आदेशों पर अमल ही से धार्मिक समाज की स्थापना संभव है

हौज़ा/ क़ुरआन के आदेशों पर अमल ही से एक धार्मिक समाज की स्थापना संभव है। यही समाज की खराबियों को दूर कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि क़ुरआन पर अमल हर समस्या का हल है, अपराधों को रोकने के लिए क़ुरआन के नियमों को अपनाया जाए और यह ध्यान रखा जाए कि क़ुरआनी सिद्धांत सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, जामिआ क़ादरीया अशरफ़िया के 27वें वार्षिक हफ़्ज़ और क़िराअत उत्सव में उलमा का भाषण। क़ुरआन से जुड़ने की दिशा में विशेष ध्यान आकर्षित किया गया।

’’क़ुरआन के आदेशों पर अमल ही से एक सही समाज की स्थापना संभव है। यही समाज की खराबियों को दूर कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि क़ुरआन पर अमल हर समस्या का हल है, अपराधों को रोकने के लिए क़ुरआन के नियमों को अपनाया जाए और यह ध्यान रखा जाए कि क़ुरआनी सिद्धांत सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए हैं।

ऑल इंडिया सुन्नी जमीअतुल उलमा के अध्यक्ष मोइन मियां ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि क़ुरआन की तिलावत को अपनी आदत बना लें, तो हर चिंता से निजात मिल सकती है। अल्लाह के शब्दों की तिलावत दिल की सफाई और आत्मिक विकास का कारण बनती है। वह छात्रों को भी बधाई देते हैं जिन्होंने अपने सीने में क़ुरआन को सुरक्षित किया और क़ुरआन के हाफ़िज़ बने।

यह सभा शनिवार की रात, नमाज़-ए-इशा के बाद, सनी मस्जिद बिलाल शुक्ला जी स्ट्रीट में आयोजित की गई थी।

मौलाना ज़ुबैर अहमद बरकाती ने क़ुरआन के फ़ज़ाइल और उसकी महानता पर चर्चा करते हुए कहा कि हमारी नई पीढ़ी को क़ुरआन की शिक्षा देना बहुत जरूरी है। एक अच्छे समाज की भलाई और समृद्धि इसी में है कि बच्चों को धार्मिक और आधुनिक दोनों प्रकार की शिक्षा दी जाए। उन्होंने यह भी कहा कि ये हाफ़िज़-ए-क़ुरआन जो क़ुरआन को अपने सीने में सुरक्षित रखते हैं, वे न केवल क़ुरआन के संरक्षक होते हैं, बल्कि भविष्य में राष्ट्र के नेता भी बनेंगे।

इस मौके पर जामिआ अशरफ़िया से फ़ारिग होने वाले 16 हाफ़िज़ और 5 क़ारीयों को प्रमाणपत्र प्रदान किए गए।

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